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अंत और शुरुआ

मैं हर बार जब कलम उठता हूं बस यही सोचता हूं की आज तेरे बारे में हर बात, तुझसे जुड़ी हर याद आज स्याही में भिगो दूंगा तेरे मेरा हंसना, हल्की हल्की रुसवाईयां, एक दूसरे पर निर्भरता, एक दूसरे का ख्याल रखना सब कुछ मैं इन चंद पन्नो पर उतार दूंगा और तेरे मेरे किस्सों का आज अंत लिख दूंगा ।

मैं शुरू करता हूं तेरे नाम से और फिर तेरी आंखों की गहराईयों के बारे में लिखते लिखते धीरे से तेरे दिल के जज्बातों को अपनी लेखनी में समझने और समझाने लगता हूं ।

और बस फिर एक ठहराव आता है तेरे दिल से जब मेरे दिल की ओर जाते हुए ख्याली रास्तों पर निकल पड़ता हूं और ना जाने कब हर गली, हर मोहल्ले और हर मोड़ पर तेरी तलाश शुरू कर देता हूं ।

ध्यान ही नहीं रहता उस वक़्त गुज़र रहे वक़्त का की कब वो कुछ पल और कुछ शब्दों में लिखे जाने वाला किस्सा अब पूरे दिन में नहीं लिखा जा रहा है ।

फिर जब तेरे ख्यालों के शहर से वापिस लौटता हूं तब फिर एक बार अपनी कलम की लगाम खींचता हूं और ना जाने कितनी दफ्फा शब्दों को उथल पुथल करता हूं । ताकि मुझे कोई सिरा मिल सके जिसका सहारा लेते हुए मैं हमसे जुड़ी किस्सों के समन्दर का एक किनारा बना कर उसके सामने पूर्णविराम लगा सकूं ।

लाखों कोशिशों के बावजूद जब एक बनावटी से अंत के करीब पहुंचता हूं “की बस फिर यूं ही सब खत्म हो गया लेकिन..”
और सबके अंत में ये एक शब्द “लेकिन” लिखकर एक नई कहानी, नए किस्से और नए सफ़र की शुरुआत कर बैठता हूं ।

तेज धार वाला चाकू

तुझसे जब दूर हुआ तो काफ़ी तकलीफ़ हुई , मुझे बड़ा गुस्सा आया जो अपने लाया अनगिनत सवाल जिनके जवाब सिर्फ तुम्हारे पास थे लेकिन तुम मुझसे दूर थी ।

तो खुद से ही सवाल करता रहता और खुद ही उन सवालों के अजीब मनगदंत जवाब दे देता जिनसे कुछ पलों के लिए या तो दिल को सुकून मिल जाता या दिल में जो जख्म है वो थोड़ा और गहरा हो जाता ।

सच पूछो तो मुझे लगने लगा था की ये जख्म कभी नहीं भरेगा और न जिंदगी में कुछ ठीक होगा लेकिन धीरे धीरे उस घाव पर हर दिन बीत रहे वक़्त ने अपने कच्चे धागों से टांके लगाने शुरू किए और फिर एक आस दिखने लगी की ये वक़्त खुद ही सब सही कर देगा ।

और शायद ये सच भी साबित हो जाता लेकिन फिर एक दिन ना चाहते हुए भी मैं उस खुदा से खुद की खुशियों की दुआ मांगते हुए तेरा जिक्र कर बैठा और तुझे फिर वापिस लौटा देने की उससे खुवाईश जाहिर कर दी ।

और फिर उस दिन से मेरी आंखों के समंदर में तेरे खाबों के सैलाब आने शुरू हो गए जिन्होंने मेरे इस हर बांध को तहस नहस कर दिया जो मैने मेरे दिल की हिफ़ाज़त के लिए बना रखे थे ।

लगने लगा जैसे मेरे उस जख्म के टांकों पर किसी ने तेज़ धार वाला चाकू चला दिया हो जिससे हर धागा कट गया जो उस घाव को भरने में मेरा सहायक बना हुआ था और देखते ही देखते वो जख्म फिर हरा हो गया और लाखों गम फिर आज़ाद हो गए और मेरी सब खुशियां किसी पिंजरे में कैद हो गई ।